आतंकवाद शब्द सुनकर स्वत: ही अपने मन में भय उत्पन्न होने लगता है। आतंकवाद आतंक की वह पृष्ठभूमि है जिससे संपूर्ण मानव समाज दहल उठता है सहम उठता है। वैसे तो आतंक शब्द ही मनुष्य को आतंकित करने हेतु पर्याप्त है परंतु आतंकवाद वह शब्द है जिससे आतंक भी आतंकित हो उठे। आतंकवाद और आतंकवादी भेड़ियों की शान है जिसके सामने मनुष्य जीवन किसी कीड़े मकोड़े से भी तुच्छ है। जो मनुष्य जिंदगी के साथ किसी भी तरह का खूनी तांडव करने हेतु व्याकुल रहता है। आतंकवाद संभवत रामायण कालीन राक्षस वंश के प्रजाति हैं जो युगो युगो से मनुष्यों का संहार करते चले आ रहे हैं।
आतंकवाद का इतिहास
वैसे तो आतंकवाद का खूनी खेल युगो युगो से चलता आ रहा है। इसका सात्विक प्रमाण बता पाना असंभव है परंतु समय-समय पर कुछ संगठनों और मनुष्यों द्वारा अपनी इच्छा की आपूर्ति के लिए देश के नागरिकों की सुरक्षा को निशाना बनाकर अपनी बात सरकार से मनवाने की कोशिश होती रही है। जो कि आतंकवाद की श्रेणी में आती है। आतंकवाद की कोई धर्म, जात और कुल नहीं होती। इसकी कोई भाषा नहीं होती, कोई चेहरा नहीं होता। आतंकवाद को किसी धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है।
आतंकवाद का विस्तार
आतंकवाद आज के समय में आतंक का व्यापार बन गया है। आजकल कई अलग-अलग संगठन बन गए हैं। आतंकवाद की जड़ संपूर्ण सृष्टि को जकड़ रखी है। आजकल प्रतिदिन तरह-तरह के समाचार सुनने को मिलते हैं जो आतंकवाद से जुड़े होते हैं। कश्मीर में तोड़फोड़, इजराइल में बम धमाका, अमेरिका निशाने पर आदि समाचार तो हमारे दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। आतंकवाद इतना सशक्त हो गई है कि कुछ देशों की सत्ता तक हथिया लेने में कामयाब हो गई है। इराक, सीरिया यह सब इन्हीं की खूनी दास्तां बयां करती है। आतंकवाद की राजनीति आज अंतर्राष्ट्रीय रूप ग्रहण कर चुकी है। इस के चक्रव्यूह में बड़े-बड़े राष्ट्र फस चुके हैं।
आतंकवाद का उद्देश्य
आतंकवाद का मुख्य उद्देश्य जन भावनाओं में भय का माहौल पैदा करना है। इसका मुख्य कार्य दंगा कराना, बम ब्लास्ट करवाना, मजहब के नाम पर आतंक को बढ़ावा देना है। इस सबके अलावा सरकार पर दबाव बनाने के लिए लोगों को अगवा कर कत्ल करना और किसी खास मजहब के युवाओं को बहला-फुसलाकर आतंकी बनाना है। यह संपूर्ण सृष्टि में भय का माहौल व्याप्त करना चाहता है।
आतंकवाद देश दुनिया में व्याप्त वह प्रचलन है जिसे धार्मिक रंग देकर उन्माद बनाया जाता है। आतंकवादी विचारधारा में खासकर इस्लामिक विचारधारा वाले कट्टरपंथी युवक जाते हैं। इन्हें पहले से इस्लाम को गलत तरीके से तोर जोड़कर सच्चे इस्लामी बनने का सपना दिखाया जाता है जो कि वास्तव में एक फरेब है एक झूठ है। सच्चाई से इसका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। बाद में इस्लाम के नाम पर इन युवकों को जिहाद करने के लिए प्रेरित किया जाता है और यहीं से आतंकवादी बनने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
इन्हें इतना उकसाया और भड़काया जाता है कि यह अपने आप को सब समाज का दुश्मन समझने लगता है और सब समाज को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य छोटी-छोटी हिंसक घटनाओं के साथ बड़ी-बड़ी नरसंहार की कहानियां लिख देता है। युवाओं को नशे का आदी बनाया जाता है इन्हें कोकीन, अफीम, चरस, गांजा आदि जानलेवा ड्रग्स दिया जाता है जिससे यह अपने आप को समझना बंद कर देते हैं और फिर आतंकी आकाओं के इशारे पर अपनी जान भी कुर्बान कर देने को तैयार हो जाते हैं।
इस प्रकार की नृशंस अपराधिक आतंकी गतिविधियां एक खास समुदाय और धर्म को शर्मसार कर देती है। उस खास समुदाय को समाज में उपहास का पात्र बनना पड़ता है लोगो समुदाय से दूरी बनाने लगते हैं। जिससे उस समाज के लोगों में हताशा नजर आने लगती है। आतंकवादियों द्वारा इस्लाम जैसे पवित्र धर्म का नाम इस्तेमाल कर इस्पात धर्म को शर्मसार कर दिया है।
आज संपूर्ण विश्व की 90 % से ज्यादा आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वाला आतंकी अपने आपको मुस्लिम और इस्लामिक कहता है। 90 % से भी अधिक संगठन है जो इस्लाम का गलत उपयोग कर रही है। कभी-कभी कुछ राजनेताओं के और पूजी पतियों के द्वारा भी व्यक्तिगत फायदे के लिए भी आतंकवाद को बढ़ावा दिया जाता है।
निष्कर्ष
आतंकवाद व सुरसा रूपी राक्षस है जो संपूर्ण सृष्टि में अपना मुंह दिन प्रतिदिन फैला दी जा रही है। बावजूद इसके कि कई सारे बड़े छोटे देश इसे मिटाने की कोशिश में हैं। अतः इसे रोकने के लिए संपूर्ण मानव जाति को एक होकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज उठानी चाहिए और इसके खात्मे के लिए सब को एकजुट रहना चाहिए। युवाओं और बच्चों को इसके बारे में जागरूक करना चाहिए।
किसी एक मजहब और धर्म के लोगों को इसके लिए जिम्मेदार नहीं समझना चाहिए जिससे उनका उपहास हो और वह समाज में अपने आप को अकेला महसूस करें जिससे आतंकवादियों को उन्हें अपनी तरफ मिलाने में ज्यादा सोचना ना पड़े। आतंकवाद किसी एक व्यक्ति देश धर्म या जाति का दुश्मन नहीं बल्कि सारी मानव जाति की दुश्मन है। अतः यह एक बहुत बड़ी समस्या है जिसे किसी के द्वारा भी अकेले खत्म नहीं किया जा सकता। इसे संपूर्ण मानव जाति को मिलकर समाप्त करना होगा।
आतंकवाद को रोकने के लिए हम सब को जागरूक होकर यह सोचना चाहिए कि आतंकवादी की कोई पहचान नहीं होती। उसकी एक ही पहचान होती है आतंकवादी और इसे प्रोत्साहन देने वाला भी आतंकवादी ही होता है। आतंकवादियों को फंडिंग करने तथा पनाह देने वालों को सजा-ए-मौत होनी चाहिए। ऐसी कड़ी से कड़ी सजा जिसे देखकर किसी के मन में भी आतंकवादियों के लिए सम्मान और प्यार ना उभरे। लोग आतंकवादियों की जात और मजहब बताने से डरे। आतंकवादियों के लिए कोई सुलह, सुनवाई और समझौता नहीं जल्द से जल्द न्याय प्रक्रिया को पूरा करके उसे सजा देनी चाहिए। तभी आतंकवाद पर काबू पाया जा सकता है।