छुआछूत पर हिंदी में निबंध | Chuachut Par Nibandh Hindi Mein (Long & Short)

700 शब्दों में अस्पृश्यता तथा छुआछूत पर हिंदी निबंध

छुआछूत समाज की वह अवधारणा है जिसके कारण कोई एक खास वर्ग युगो युगांतर से पीड़ित रहा है। छुआछूत समाज में घृणा और अमानवता का प्रतीक है। छुआछूत जातिवाद का परिणाम स्वरूप मिला भेंट है। छुआछूत वर्णाधार पर बंटवारे का परिणाम है। यह किसी खास वर्ग पर थोपा गया धब्बा है जो उसे समाज में नारकीय जीवन का एहसास दिलाता है।

छुआछूत की प्रथा लंबे समय से चलती आ रही है। इतिहास में इसकी क्रूरता की व्याख्या सुनकर रूह कांप जाती है। यह मानव के व्यक्तिगत जिंदगी पर थोपी गई बोझ है जो उस वर्ग को समाज तथा सामाजिक कार्यों से अलग रखती है। उस वर्ग के लिए यह अभिशाप है जो मां के पेट से हैं उसका पीछा करना शुरू कर देती है। जब समाज को चार वर्णों में बांटा गया तब ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों को माना गया।

शुद्र वर्ण को छुआछूत की नजरों से देखा जाने लगा। समाज में लोग इनसे घृणा करने लगे। ऊंच वालों के पास इनका भटकना वर्जित था। यह गंदे कपड़े झुग्गी झोपड़ी में अपना गुजारा करते थे। इन की कोई वास्तविक जिंदगी नहीं होती थी। इन्हें समाज में प्रताड़ित किया जाता था।

छुआछूत उस गलत अवधारणा और वर्ण आधार का परिणाम है जिसमें यह बताया जाता है कि इस खास वर्ग को छूने से पाप लगता है। छुआछूत समाज की वह बुराई है जिसमें नीच वर्ग के आदमी को अपनी जिंदगी औरों की जिंदगी से तुच्छ और अपने आप से घृणा कराती है।

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छुआछूत की अवधारणा इतनी गलत होती है कि अगर कोई उच्च वर्ग का इंसान उस वर्ग के साथ भोजन कर ले तो उसे भी समाज में छुआछूत की भावना से देखा जाता है। छुआछूत एक प्रकार की सामाजिक कुव्यवस्था है जो समाज को समाज से अलग करता है। व्यक्तित्व और इंसानियत का अमानवीय चेहरा है छुआछूत। ऊंच-नीच की गलत अवधारणा है छुआछूत। मनुष्यों की राक्षसी प्रवृत्ति का रूप है छुआछूत।

छुआछूत का इतिहास

छुआछूत बहुत पुरानी सोच है जो कई युगों से चलता आ रहा है। जिसका वास्तविक प्रमाण बताना मुश्किल है परंतु माना जाता है कि जब समाज को वर्ण व्यवस्था के आधार पर बांटा गया वहीं से छुआछूत माना जाने लगा। वर्ण व्यवस्था के आधार पर बांटा गया चार वर्ण ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र में सबसे नीचे शुद्र को रखा गया। तभी से शुद्र वर्ण के लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाने लगा। तब से यह एक प्रचलन और हमारी सामाजिक व्यवस्था में शामिल हो गया।

छुआछूत वर्ग के साथ शुरू से ही गंदे कामों, मैले उठाना, झूठा खाना खाने को देना उसके पास से नहीं गुजरना, उसके शरीर से दूरी बना कर रखना, उससे बात ना करना, आदि कार्य शुरू कर दिया गया था। यह आदि अनादि काल से चलता आ रहा वह व्यवस्था है जो सभ्य समाज को दानव रूप दिखाने को मजबूर करती है। इतिहास में इसके बहुत सारे ग्रुप वर्णन मिलते हैं जिसे पढ़कर किसी भी पत्थर दिल इंसान का ह्रदय पिघल जाए। ऐसे डरावने दृश्य मिलते हैं जो मानवता को शर्मसार कर देती है।

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कालांतर से जब भी कोई नहीं सूअर का व्यक्ति किसी उच्च वर्ग के व्यक्ति के शरीर में छुआ जाता है तब उसे मारा पीटा तथा प्रताड़ित किया जाता है। उसके बाद उच्च वर्ग का व्यक्ति गंगा जी में स्नान करके खुद को पवित्र करता है जिसे देखकर किसी भी इंसान का अपने आप पर घृणा महसूस करना स्वाभाविक बात है।

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छुआछूत का दुष्प्रभाव

छुआछूत अपने आप में एक शर्मनाक रीत है जो सदियों से चलती आ रही है। छुआछूत के कारण एक खास वर्ग आज भी अपना विकास सही ढंग से नहीं कर पाई है। छुआछूत समाज में घृणा द्वेष फैलाती है। जो कभी-कभी दंगे और नरसंहार का कारण बनती है। छुआछूत विकास के राह में रुकावट तथा मानवीयता का शत्रु है। छुआछूत मानव से मानव में दूरी बनाकर रखता है जिससे सामाजिक प्रबंधन तथा विकास अधूरा रह जाता है।

छुआछूत के कारण एक खास वर्ग ज्ञान होते हुए भी अपनी पहचान कायम करने में नाकामयाब रह जाता है। जिससे अन्य वर्गों के प्रति उसके मन में जहर घूलता रहता है जो सामाजिक अराजकता का कारण बन सकता है। छुआछूत के कारण निचले तबके का विकास रुक जाता है जिसके कारण वह गलत रास्ते पर भटक कर कई बार हथियार उठा लेते हैं जिससे मानव सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होने लगता है।

भारतीय सभ्यता और संस्कृति का मूल मंत्र ‘मानव जाति से प्यार’ ऊंच-नीच की इस दलदल में कहीं गुम हो गया है। ऊंच-नीच की छुआछूत बढ़ते बढ़ते पूरे समाज में फैल गई है। राजनीतिक दल हो या फिर सभ्य समाज की संस्कृति सभी जगह छुआछूत अपने चरम पर है।

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निष्कर्ष

छुआछूत को रोकने का प्रयास है समय-समय पर बुद्धिजीवियों द्वारा किया गया है। सरकार द्वारा भी इस पर तरह-तरह के प्रयास हो रहे हैं। लोगों में जागरूकता फैलाई जा रही है। परंतु बिना सामाजिक प्रयास से इसे रोकना संभव नहीं है। क्योंकि यह हमारे समाज में एक प्रथा और रीत की तरह चलती आ रही है। इस सब को रोकने के लिए सरकार को नीचे तबकों के लिए पढ़ाई की उचित व्यवस्था तथा सामाजिक पटल पर इसे समुचित रूप से दंडनीय करार देने की जरूरत है।

ऐसा नहीं है कि इसके लिए कोई कानून नहीं बना है सरकार इस पर कुछ सोचती नहीं कुछ खर्च नहीं करती। इसके बावजूद भी यह आज भी पनप रही है। जरूरत है सरकार और अधिक से अधिक सख्त कानून बनाए। समाज के बुद्धिजीवियों को आगे आना चाहिए। समाज के नवयुवकों को समाज के विकास हेतु इसे पूर्ण रूप से बहिष्कार करना चाहिए और नया शिक्षित समाज का निर्माण करनी चाहिए। सभी वर्ग साथ मिलकर चले तो यह संभव है कि हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें।

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