दुर्गा पूजा पर निबंध

भारत में कई प्रकार के त्यौहार मनाया जाते हैं अर्थात भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। इन्हीं त्यौहार में एक त्यौहार है दुर्गा पूजा। दुर्गा पूजा हिंदुओं का महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष आश्विन माह के पहले से दसवें दिन तक मनाया जाता है।

यह त्यौहार पूरे 10 दिन तक मनाया जाता है। इस पूजा की तैयारी कई महीनों पहले से लोग उल्लास पूर्वक शुरू कर देते हैं।यह एक परंपरागत अवसर है जो लोगों को एक भारतीय संस्कृति और रिति में जोड़ता है। विभिन्न प्रकार के रीति-रिवाजों जैसे उपवास दावत पूजा आदि को पूरे 10 दिन के त्यौहार के दौरान निभाया जाता है। लोग अंतिम 4 दिनों में मूर्ति विसर्जन और कन्या पूजन करते हैं जो सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी के नाम से जाने जाते हैं। लोग 10 भुजाओं वाली शेर पर सवार देवी के पूरे उत्साह और भक्ति के साथ पूजा करते हैं।

यह त्यौहार पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है कुछ राज्य पश्चिम बंगाल त्रिपुरा आदि बहुत बड़े तौर पर मनाते हैं। जो लोग विदेश में रहते हैं वह खासकर छुट्टी लेकर आते हैं यह त्यौहार मनाने। यह त्यौहार पूरे भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश आदि देशों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाते हैं।

बहुत सारे गांव में 10 दिन तक नाटक और रामलीला का कार्यक्रम रखा जाता है। इसमें लाखों कलाकार मिलकर मूर्ति का रूपरेखा तैयार करते हैं। जिनसे इनको रोजगार मिलती है। पूजा के बाद लोग पवित्र जल में मूर्ति विसर्जन करते हैं। भक्त उदास चेहरा के साथ अपने घर लौटते हैं और माता से अगले वर्ष फिर से बहुत सारे आशीर्वाद के साथ आने का प्रार्थना करते हैं।

किस दिन किस देवी की पूजा होती है?

हम सब यह जानते हैं यह 9 दिनों का त्यौहार है। अब आइए जानते हैं किस दिन किस देवी की पूजा अर्चना की जाती है।

1) शैलपुत्री

देवी का पहला रूप है शैलपुत्री। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है। हिमालय पर्वत में उत्पन्न होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। यह वृषभ पर सवार रहती हैं। इनका वाहन वृषभ है। इस कारण से इन्हें वृषारूढा भी कहते हैं। मां शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे हाथ में कमल रहता है। इनकी महत्व और शक्ति अनंत है।

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2) ब्रह्मचारिणी

देवी का दूसरा रुप है ब्रह्मचारिणी। इनके नाम से ही पता चल जाता है कि इन्होंने तपस्या आदि की है। नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इन्हें तपस्याचारिणी भी कहते हैं। भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए इन्होंने कठिन तपस्या की थी। देवी के इस स्वरूप की अर्चना दुर्गा पूजा के दूसरे दिन बड़े धूम के साथ की जाती है। इस देवी से हमें इस ज्ञान की प्राप्ति होती है कि कठोर समय में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।

3) चंद्रघंटा

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। इस देवी का रूप अत्यंत कल्याणकारी और शक्तिशाली मानी गई है। इस देवी के माथे पर घंटा जैसा आधा चांद बना हुआ है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।

4) कुष्मांडा

पूजन के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। इस देवी को कुम्हड़े यानी कोहङा की बलि पसंद है। इसलिए इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। कहा जाता है देवी ने अपनी मंद हंसी से सृष्टि की रचना की थी।

5) स्कंदमाता

पूजन के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा होती है। इस देवी को सुखदायनी मानी जाती है। यह देवी अपनी गोद में स्कंद को पकड़े हुए रहती है। कहते हैं इनकी कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है।

6) कात्यायनी

छठे दिन मां कात्यायनी की उपासना की जाती है। यह देवी आज्ञा चक्र पर सवार रहती हैं। इनकी उपासना से सृष्टि के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

7) कालरात्रि

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। इस देवी के तीन नेत्र हैं। इनके तीन नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। यह आसुरी शक्ति से रक्षा करती है तथा यह काल से भी रक्षा करती है।

8) महागौरी

पूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा की जाती है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र श्वेत रंग की होती हैं। इसलिए इन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा जाता है। इनकी आयु 8 साल की मानी जाती है। इनकी उपमा में शंख चंद्र कंद और फूल भेंट की गई है।

9) सिद्धिदात्री

देवी का नवा और अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री की। नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की अर्चना की जाती है। सिद्धिदात्री यानी सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली है। इनका वाहन सिंह है तथा यह कमल पर भी विराज करती है। यह नवरात्रि की अंतिम देवी की पूजा है। यह देवी हमें अमृत पद की ओर ले जाती है।

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9 दिनों में नौ देवियों की रूप है?

यह पूजा मंदिरों में तथा घरों में भी व्यवस्थित कर पर होती है। दुर्गा पूजा का एक कारण तो हम जानते हैं कि राम ने मां दुर्गा की पूजा अर्चना की थी। परंतु पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का एक और कारण है। दुर्गा पूजा का दूसरा कारण है देवी और राक्षस की लड़ाई। देवी और राक्षस के बीच 9 रात 9 दिनों की लड़ाई हुई थी।9 वे दिन में देवी दुर्गा ने राक्षस को पराजित कर जीत को प्राप्त किया था। इसलिए भी यह पूजा की जाती है।

इतिहास

यह त्यौहार मनाने के पीछे बहुत बड़ा खतरा यह है कि एक बार राक्षस राजा था महिषासुर जो पहले ही देवताओं पर स्वर्ग पर आक्रमण कर चुका था।वह बहुत ही शक्तिशाली था जिसके कारण से कोई नहीं हरा सकता था।तब ब्रह्मा विष्णु महेश के द्वारा एक आंतरिक शक्ति का निर्माण किया गया जिनका नाम दुर्गा रखा गया।उन्हें राक्षस महिषासुर का विनाश के लिए आंतरिक शक्ति प्रदान की गई थी। उनके दसों भुजा में 10 तरह के अस्त्र-शस्त्र दिया गया। उन्होंने पूरे 9 दिन नौ रात युद्ध करकेअंत में दसवें दिन राक्षस को मार दिया। और उस दिन को विजयदशमी कहा जाता है।इसीलिए दुर्गा पूजा सदैव अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक कहा जाता है।हिंदू धर्म में यह भी कहा जाता है कि नवरात्रि में ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित हो जाते हैं, कई बार इन ग्रहों का बुरा प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है,इसी बुरा प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में मां दुर्गा का आराधना की जाती है।

महत्त्व

दुर्गा पूजा का त्यौहार बहुत अधिक महत्व रखता है। दुर्गा पूजा को ही नवरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि का अर्थ 9 रात होता है। दसवां दिन विजय दशमी दशहरा के नाम से जाना जाता है।यह वह दिन होता है जिस दिन मां दुर्गा ने राक्षस के ऊपर 9 दिन 9 रात युद्ध के बाद विजय प्राप्त की थी। लोगों द्वारा देवी दुर्गा की पूजा ताकत और आशीर्वाद पाने के लिए की जाती है। देवी दुर्गा अपने भक्तों को नकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक विचार को हटाने के साथ-साथ शांतिपूर्ण जीवन देने में मदद करती है।या भगवान राम की बुराई रावण के ऊपर जीत के उपलक्ष में भी मनाया जाता है।लोगों इस त्यौहार को दशहरा की रात रावण के पुतले और पटाखों को जला कर मनाते हैं। दुर्गा पूजा पूरे साल में दो बार मनाया जाता है आश्विन और चैत्र दोनों माह ने मनाया जाता है। हालांकि आश्विन माह में ज्यादातर मनाया जाता है।इस पूजा के दौरान सबसे ज्यादा खुशी बच्चों में देखने को मिलता है पूरे 10 दिन का मेला का नाम सुनकर कई महीनों पहले से खुश रहता है। इन मेला के दौरान बच्चों मिठाइयां पटाका इत्यादि खरीद उल्लास पूर्वक मेला के रूप में दुर्गा पूजा को मनाते हैं। संध्या आरती का भी इस दौरान खास महत्व है। कोलकाता की संध्या आरती उतना रौनक खुशबूदार चमकदार होती है कि लोग इसे देखने दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। सजे धजे लोग इस पूजा की भगता और सुंदरता को और बहुत बढ़ाते हैं। मां दुर्गा के साथ सरस्वती लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है।

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दुष्प्रभाव

लोगों के लापरवाही के कारणयह पर्यावरण को विशाल स्तर तक प्रभावित करता है। इसमें पूरे 10 दिन तक पटाखा पर आ जाता है दीप जलाया जाता है जिससे वायु प्रदूषित होता है। मूर्ति निर्माण के दौरान उसमें उपयोग किया गया कैमिकल से मूर्ति विसर्जन के दौरान नदी पोखर का जल प्रदूषित होता है।

बचाव

मूर्तियां को बनाने में कलाकार को ज्यादातर पर्यावरण का उपयोग करना चाहिए।इसमें पटाखों का उपयोग नहीं करना चाहिए दिलवाले दीप की जगह मोमबत्ती या बिजली वाले जीप का उपयोग करना चाहिए ज्यादातर पटाखों का उपयोग बच्चे करते हैं बच्चे को रोकना चाहिए। हालांकि शिक्षित समाज में इसका उपयोग कम देखने को मिलता है अशिक्षित समाज में कुछ ज्यादा अशिक्षित समाज को इसके पीछे जागरूक करने की आवश्यकता है इसके प्रति सरकार और समाज दोनों को कदम से कदम मिलाकर चलना पड़ेगा।

कोरोना के कारण कैसे मनेगा दुर्गा पूजा?

जैसा कि हम सब जानते हैं कोरोना से पहले ही काफी अफरातफरी मची हुई है। उसी को मध्य नजर रखते हुए सरकार ने इस बार दुर्गा पूजा में कुछ नियम बनाए हैं। तो आइए आपको बताते हैं वह क्या नियम हैं तथा भक्तजन पूजा सावधानी के साथ कैसे करेंगे।

इस बार काफी कम जगह पर पंडाल बनेंगे तथा जहां पंडाल नहीं होगा वहां केवल नियमों का निर्वाह किया जाएगा।
पंडालों में सैनिटाइजिंग की होगी पूरी व्यवस्था तथा सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
फेस मास्क पहनना अनिवार्य है इसके बिना एंट्री नहीं होगी।
एक बार में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ 15 लोग ही पूजा कर सकेंगे।
मंदिर में जल अमृत  तिलक प्रसाद आदि नहीं मिलेंगे।
इस बार कही भी मेले नही लगेगे।

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