हिंदी कविता कक्षा 10 की प्रतियोगिता के लिए | Hindi Poem for Class 10th Competition

बातचीत

मुझे बोलना आया ही नही
बस पूछ ले कोई
बचपन से सर दर्द का न कहा
अब दिल के दर्द का क्या कहना था
हमने कहा नही
किसी ने बूझा भी नही
बस साथ होने के ढकोसले
पास होकर साथ होने की बात है हो रही
क्यो इस खालीपन मे
मै अंदर ही अंदर रो‌ रही।

गुमसुम

समझने-समझने की बात है
बात ये नही
कि कौन‌ तुम्हारे पास है
दूर रहकर भी
जो तुम्हारे साथ है
उसमे यह बात ख़ास है
कि उसमे समझने वाली बात है
साथ-साथ घूम रहा है जो
कह न‌ सको उसको कुछ तुम
तो क्या यह साथ होना
साथ होना है?
पास रहते भी उसके
रहे तुम गुमसूम।

बारिश

जब कभी बारिश आई है
जाना हर बार तेरी याद आई है
वो‌ आखिरी मुलाकात हसीन सी
गीली हुई ज़मीन थी
चल तो हम रहे थे
बनता था वक्त का रुकना
पर कोई क्या करे
पड़ता है आगे वक्त के झुकना
दुविधा तो तब यही थी
रुक जाऊं कि चल पड़ूं
सोच ही सोच में वक्त गुज़र गया
न बारिश रुकी न वो रुका
मेरे रुकने का क्या लाभ था
अब तो‌ बस दिल ही दिल में है
प्यार बेशुमिर सा।

कुछ तो है

यूं देख करअनदेखा कर रहे हो
तुम किस से मुंह फेर रहे हो
तेरी आंखे गवाह हैं इस बात की
तेरे दिल में छुपे‌ हर जज़बात की
कि तुमने हर पल क्या चाहा है
किसको चाहा‌‌ है
न मुंह से बोलकर
आंखो से बोलने की कला‌ अच्छी है
शायद तेरे मुंह से निकली‌
हर बात भी सच्ची है
क्या सच क्या‌ झूठ , तू जाने
चाहे‌ तू माने या न माने
मगर
कुछ तो है…

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छोटे पंख

बेबसी को आज फिर से समझा है
उसकी हंसी में आज भी ग़म सा है
वो बात जो‌ मेरे बचपन से चली थी
वो जान अब भी डरी-डरी थी
सहमा सा चहरा, सहमी सी मुसकान
जैसे खोज रहा लंबी उड़ान
बेमतलब वो सब रिश्ते हैं
जो सीमाओं को खींचे हैं
दिल कहे तू हर पल चल
नही सोच होगा क्या कल
चाहत नही है मंज़िल की
बस सफर तय करने की है आरज़ू

खुश तो थी जब खाली थी
भरा लोगों ने इस कदर
कि अब हर चीज़ सवाली थी
उम्र की मैं कच्ची हूं
शायद अब भी मैं बच्ची हूं
रोकने से रुकी हूं
दबाने से दबी हूं
ये क्या है ? ये क्यों है?
फिर भी मैं तुम्हारे ताने सुनने को खड़ी हूं

मिलती हूं थोड़ा बड़ी होकर
अरमानो को पंख लगाकर
कामयाबी को जवाब बनाकर
तुमसे खुद का वजूद पाकर
मिलती हूं‌ मैं।

तालाश

हलचल सी चली है अंदर
जैसे लहरे चली हो समंदर
तेज़ हो रही, धीमे हो रही
उलझन सी पैदा हो रही
अगर यूं कहूं कि यह ज़िंदगी है
लहरों पर चलना बंदगी है
तो‌ क्या‌ यह सही है?
या सच यही नही है
भागे, बचे, गिरे, चले
रुके नही चलते-चले
क्या‌ ज़िदगी का मकसद बस इतना था
मुशकिलों से लड़-झगड़ बस जीतना था?
खुशी मिली क्या तुमको जो ढूंढते हो?
या ढूंढते-ढूंढते पूरी ज़िदगी जूझते हो?
क्या‌ पता जो दिख रहा वो‌ हो नही
खुली आंखे पर सुध-बुध खोई हुई
उपर से जो नज़ारा है
हकीकत सब छुपा रहा है
कभी देखा है गहराई को
तलाशा है सच्चाई को?
जो ढूंढ रहे वो‌‌ हो कहीं
पर जहां ढूंढ रहे वहां हो नही
तैरना है तो डूबना पड़ेगा
गहराई को छूना पड़ेगा
फिर शायद वो हासिल हो
जिसकी तालाश है।

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उलझन

मासूमियत क्या है?
ख्याल है, सवाल है?
यां जवाब..
हर बात का
फिर भी चुप
हैरानी सी है
यह दुनीया कैसी है
एक पल को‌ खुश,
दुसरे पल नम
और कभी-कभी तो
न देख सके किसी का ग़म
जो पल बीत गया
उसको सोच रहा
जो चल रहा
उसमे खो गया
न पता अब क्या है
कल क्या था
कल क्या हो सवाल सा था
क्या हो‌ रहा उलझन है
उलझन चली गई, उलझन में
आने वाली उलझन‌ को‌ सोचते हुए ।

‘हैप्पी ऐंडिंग’

काश‌ मेरा भी किरदार फि़ल्मो जैसा होता
हर ग़म के बाद ख़ुशी का माहौल होता
जो रखा है समाए सीने में
उसे कभी खोला ही नही
आया ज़बान तक हमेशा
बस कभी बोला ही नही
ऐसा नही है कि बोला नही जाएगा
बस डर है वो रिश्ता खो जाएगा
कितना अच्छा हो तुम्हारे दिल में कुछ हो
ज़्यादा चाहिए ही नही
थोड़ा हो
बस हो…
प्यार मांगा ही नही
चाहे नफ़रत हो या हमदर्दी
या फिर मतलब ही सही
बस ज़िंदगी से जुड़े रहो
किसी बहाने से ही
जानते हैं उम्मीद लगाना बेकार है
क्या करें,
दिल भूलने को ही नही तैयार है
कितना अच्छा हो अगर ये फ़िल्म हो
कम से कम ‘हैप्पी ऐंडिंग’ तो होगी।

नया रस्ता

चल कर आना‌ तेरे दर तक
और तेरा ठुकरा देना हर बार
दर्द देता है
दरवाज़ा खुलने का इंतज़ार
हमेशा किया है
मगर
उम्मीद लगाए कब तक खड़े रहें
आगे बढ़ जाना अच्छा है
सच कहा होगा किसी ने
कि दुनिया गोल है
मगर पूरा रास्ता काटने से पहले ही
वहीं वापिस आ जाते हैं
तेरे दर पर
ऐसा क्यों है
कोई रस्ता मिले ऐसा
कि आगे बढ़ जाएं
और पिछला रस्ता याद न रहे।

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आवाज़

अकेली बैठी सोच रही थी
ख़्याल में गुम सी हो गई थी
मेरा जो भी सपना है
पूरा कैसे करना है
मेहनत करनी ज़रुरी है
फिर लक्ष्य से क्या दूरी है
अभी तो‌ यह बस सोच रही थी
रस्ते अपने खोज रही थी
इतने‌ में आवाज़ आती है
बेटा…..इस्त्री करना बाकी है।

आ सको तो आ जाना

खामोश हूं, शांत हूं
अन्दर से गुमसुम
नाराज़ नही हूं
बस बेआवाज़ हूं
तुमको सुनना चाहती हूं
तुमसे मिलना चाहती हूं
बेख़बर तू , तेरी भी ख़बर नही
दिल की हो गई इंतहा
इसको अब सबर नही
दर्द-ए-दिल की दास्ता
किसको जा सुनाऊं मैं
रात को कर तकिया गीला
सुबह को सो जाऊं मैं
वो इश्क भी क्या इश्क है
तमन्ना रखे चाह कर पाने की
खुश‌ हूं मैं जैसे भी हूं
ज़रूरत नही लोट कर आने की
इंतज़ार तेरा फिर भी है
आ सको तो आ जाना।

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