अंजान से खास तक का सफर – हिंदी कहानी

अंजान से खास तक का सफर

एक अंजान शहर में हम दोनों अंजान थे 

वो मेरे लिए और मै उसके लिए एक नई पहचान थे

कॉलेज की एडमिशन के वक़्त हम कॉलेज में मिले थे

हजारों के बीच बस हम दोनों एक दूसरे को ही चुने थे

बस हम दोनों उसी एसएसएलएनटी कॉलेज में हांथ थाम लिए थे

कैरियर के उलझन में हम दोनों ही फसे हुए थे

फिर क्या परिचय होते ही हॉस्टल की खोज में निकल चले थे

फिर एक दूसरे का नंबर लेते हुए हम दोनों अगले दिन साथ मिले थे

दिखने में तो दोनों ही एक दूसरे को मासूम लगते थे

असलियत तो दोनों की हॉस्टल के पहले दिन ही दिखने लगे थे

हम दोनों ही डरे हुए थे क्यूंकि घर से बाहर पहली बार दोनों रहने चले थे

बस फिर वो पहली अगस्त को हम दोनों साथ में हॉस्टल आए थे

नई हवा नए जश्न दिल में नई ताजगी और जोश लेकर हम दोनों निकले थे

हॉस्टल की पहली ढलती शाम से बातों के पोटली खुलते चले गए थे

बेहद रंगीन और बिंदास किस्म के हम दोनों प्रतीत हो रहे थे

चंद घड़ियों में किसी के मुलाकात से अपनों के एहसास हुए थे 

मानों कई वर्षों से हम दोनों साथ हों इसी असमंजस में लोग रहते थे

लेकिन एक कतरास और एक चित्तरंजन से हैं सबको हम बतलाते थे

बस दरवाजे के सामने से मेरी बेड से जुड़ी उसके बेड रहते थे

फिर क्या वो मेरी तरह मैं उसकी तरह धमा चौकड़ी मचने लगे थे

See also  ।। दृष्टिकोण ।। पर कहानी

भाभी जी का खौफ हो या प्रोफेसर की डांट हमें घंटा न फर्क पड़ते थे

धनबाद के हर गलियों में हम दोनों ने लफंगों जैसे घूम रखे थे

छूट ना जाए कोई गालियां इसलिए सुनसान गलियों में भी घूम लेते थे

कॉलेज हो या कोचिंग हर जगह हम हांथों में हांथ लिए चलते रहते थे

हीरापुर का गुपचुप हो या चौपाटी का लॉलीपॉप ये सब हमारे प्यार थे 

झाड़ू पोछा या बर्तन धोने के लिए लड़ना यही तो अपने रिश्तों में खास थे

पूरे तीन साल एक ही बर्तन में खाना खाना ये हम दोनों के प्यार थे

मिले तो हम बहुत से थे लेकिन हम दोनों की दोस्ती में कुछ अलग अंदाज़ थे

तुम्हारा नाबालिग दिखना और सिनेमा हाल में आईडी चेक होना वो पल बेहद मजेदार थे

Scroll to Top