भारतीय संविधान

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है। जहां जनता का प्रतिनिधि जनता के द्वारा चुनी जाती है। भारत गणराज्य की अखंडता, एकता, शौर्य और साहस का प्रतीक यहां का लोकतंत्र है। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण तथा रोचक तथ्य है विविधता में एकता । यहां सभी वर्ग धर्म जाति और समुदाय के लोग निवास करते हैं। इन सभी व्यवस्थाओं को जिसे संपूर्ण सृष्टि में गौरव प्राप्त है जिसके कारण भारतवर्ष का स्मरण स्वता ही आदरणीय हो जाता है को युगों युगांतर तक अमृत्त्व प्रदान करने हेतु इस विराटरुपी लोकतंत्र में कुछ महत्वपूर्ण नियमों की बनी पुस्तक जिसे संपूर्ण भारतवासी के नेतृत्व में चुने हुए बुद्धिमान व्यक्ति द्वारा तैयार किया गया है उसे भारत का संविधान कहा जाता है। भारतीय संविधान इस विविधता में सबको समान अधिकार देकर एकता कायम करती है। सामाजिक स्थिति को भयावह करने वाली शक्तियों से बचाती है अथवा उसे दंडित करती है तथा समाज को विकास की ओर अग्रसर करने का मार्ग बतलाती है। संविधान भारतीय लोकतंत्र की धड़कन है। यह लोकतंत्र को सशक्त मजबूत तथा निडर बनाती है। भारतीय संविधान में सबको समान अधिकार दिया गया है किसी भी प्रकार का भेदभाव संविधान के विरुद्ध है। समयानुसार लोकतंत्र की स्थिति कायम रखने हेतु संवैधानिक तरीके से लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि संविधान में बदलाव करते रहते हैं परंतु औपचारिक तथा अनौपचारिक तरीके जनता की भागीदारी यहां भी सुनिश्चित होती है। भारतीय संविधान वैश्विक प्रगति एकता और शौर्य पर आधारित संविधान है। यह भारतवर्ष तथा अन्य जगहों पर भी सम्मान पूर्वक जाना जाता है।

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भारतीय संविधान का निर्माण

आजादी के बाद देश की स्थिति दयनीय थी। अंग्रेजों ने लूट कसूर मचा कर बर्बाद कर दिया था। देश चलाने को पैसों की आवश्यकता थी। वहीं दूसरी ओर संपूर्ण भारत को एक धागा में पिरोने का संकल्प। संपूर्ण भारत वर्ष कई भागों में खंडित था। सब जगह अपना अपना अलग कानूनी व्यवस्था चलती थी। भारत को लोकतंत्र के रूप में पुनः स्थापित करने हेतु एक राष्ट्र एक कानून की जरूरत थी। जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय संविधान के निर्माण कार्य आरंभ किया गया। संविधान निर्माण के लिए एक संविधान सभा की घोषणा हुई। इस सभा में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर आदि शामिल थे। इस संविधान सभा का प्रमुख उद्देश्य था भारत में खुद का कानूनी व्यवस्था तथा न्यायिक प्रक्रिया बहाल करना। संविधान निर्माण हेतु संविधान निर्मात्री सभा में कुल 22 कमेटियां बहाल हुई। संविधान निर्मात्री सभा का अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया तथा प्रारूप समिति का अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को बनाया गया। प्रारूप समिति जिसके अंतर्गत 22 कमेटियां काम करती थी जिन का मुख्य कार्य था संविधान लिखना। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में कमेटी सदस्यों ने 9 दिसंबर 1947 से संविधान लिखने का कार्य आरंभ कर दिया था। 26 नवंबर 1949 को करीब 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन के परिश्रम के बाद संविधान बनकर तैयार हो गया और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को सुपुर्द कर दिया गया। भारतीय संविधान अपने आप में एक उत्कृष्ट संविधान माना जाता है क्योंकि इस संविधान के निर्माण में प्रेस तथा जनता के साथ प्रत्येक दिन विचार-विमर्श लिया गया था। हर छोटी से बड़ी बातों का ध्यान रखा गया था। 24 जनवरी 1950 को तमाम सुधारो तथा बदलाव के बाद संविधान लिखने में शामिल 22 कमेटियों के 308 सदस्यों ने संविधान पर अपने हस्ताक्षर किए तत्पश्चात उसके 2 दिनों बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान पूरे देश में लागू कर दिया गया। भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को ही बनकर तैयार हो गया था इसीलिए प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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संविधान का महत्व

संविधान किसी भी देश का शासन होता है। संविधान देश का मार्गदर्शन करता है। यह देश में हो रहे अन्याय अनीति और अधर्म को शासन पर हावी होने से बचाता है। मनुष्य में स्वाधीनता का प्रमाण होता है संविधान। संविधान को देश में सर्वोत्तम स्थान दिया गया है ताकि सभी को समानता का प्रमाणिकता मिले। गरीब मजदूर हो या कोई नेता मंत्री संविधान का विधान सब पर समान रूप से लागू होने के कारण ही कोई एक व्यक्ति का सत्ता पर अधिपत्य नहीं हो सकता है। देश की मर्यादा सैनिक का स्वाद और मनुष्य की प्रबल विश्वास को उस देश का संविधान निर्धारित करता है। भारत जैसे देश में जहां की जनसंख्या और क्षेत्रफल ज्यादा अधिक है उस देश को एक धागे में पिरो कर सम्मान पूर्वक एकता बनाए रखने का एक मात्र माध्यम है हमारा धर्मनिरपेक्ष, जातिहीन, भयहीन, न्याय प्रिय गुणों से सुसज्जित हमारा भारतीय संविधान। जिसके अंदर संसार की सभी अद्भुत और उत्कृष्ट न्यायिक तथा सामाजिक तालमेल का मिश्रण है। संविधान मूल भावनाओं से प्रेरित तथा द्वेष क्रोध तथा गलानी से अपरिचित न्याय की कुंजी होती है।