दहेज प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप पर निबंध | Dahej Pratha par Essay in Hindi

प्रस्तावना:

भारत में दहेज एक पुरानी प्रथा है, जो काफी सदियों से चली आ रही है. दहेज लेना या देना दोनों को ही दहेज प्रथा कहा जाता है लड़की की शादी के समय लड़की के परिवार वालों द्वारा लड़के के परिवार को किसी भी प्रकार की कोई कीमत या तोहफा देना दहेज प्रथा है

प्राचीन काल और वर्तमान काल में दहेज प्रथा की स्थिति-

प्राचीन काल और वर्तमान काल में दहेज प्रथा की स्थिति अलग-अलग है अगर हम वैदिक सभ्यता की बात करें तो उस समय दहेज प्रथा जैसी कोई भी सामाजिक बुराई नहीं हुआ करती थी और साथ ही स्त्रियों और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त थे लेकिन समय के साथ-साथ जैसे जमींदारों और जागीरदारों का समय आया तभी से यह समस्या समाज में पनपने लगी थी.

आगे जब मौर्य साम्राज्य आया उस समय भी हमें दहेज प्रथा देखने को मिलती है इसी के साथ दहेज प्रथा धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करने लगी.

जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ उसी के बाद से ही इस सामाजिक समस्या पर रोक लगाने के प्रयास शुरू हुए और इसी कड़ी में 1961 में दहेज प्रथा अधिनियम सरकार ने पारित किया. जिसके तहत अब दहेज लेना या देना दोनों ही दंडनीय अपराध है पर अभी भी कहीं ना कहीं हमारे समाज में यह दहेज प्रथा प्रचलित है और कहीं ना कहीं चाहते या ना चाहते हुए भी हम दहेज प्रथा से जुड़े हुए हैं इस अधिनियम के पारित होने के बावजूद भी दहेज प्रथा आज भी हमारे समाज में वैसी की वैसी ही बनी हुई है.

दहेज प्रथा: एक सामाजिक समस्या

जैसा कि हमने अभी तक समझा कि दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या है और इस के गैरकानूनी होने के बावजूद भी यह हमारे समाज में आज भी खुली तौर पर राज करती है दहेज प्रथा एक तैराकी सामाजिक बीमारी है जो कि आजकल काफी रफ्तार पकड़ रही है और अगर इसके खिलाफ कोई और सख्त कदम ना उठाए गए तो इसके और भी दुष्प्रभाव समाज में देखने को मिलेंगे इसे रोकने का काम किसी एक व्यक्ति या विशेष का नहीं है इस समय हम सबको साथ में आगे बढ़ कर इसके खिलाफ काम करना होगा तभी हम सही मायने में एक प्रगतिशील देश के जागरूक नागरिक कहलाएंगे.

See also  प्रणब मुखर्जी पर निबंध हिंदी में | Essay on Late. Pranab Mukherjee in Hindi

भारतीय समाज: पुरुष प्रधान-

दहेज प्रथा का एक प्रमुख कारण इसे भी मान सकते हैं कि भारतीय समाज एक पुरुष प्रधान समाज है हमारे समाज में महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है इसी कारण वर्ष महिलाएं अपने पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ समाज में आवाज नहीं उठा पाती जिस कारण ऐसी सामाजिक समस्याओं का सामना उन्हें करना पड़ता है अगर हम महिला सशक्तिकरण की राह पर एकजुट होकर चलें तुम महिलाएं भी ऐसी सामाजिक समस्याओं का डटकर मुकाबला कर पाएंगे और तभी सही मायने में हम महिलाओं को उनका हक इस समाज में दिला पाएंगे.

दहेज प्रथा प्रतिबंध अधिनियम,1961 –

22 जून 1961 एक ऐतिहासिक दिन बना जो भारतीय सरकार द्वारा दहेज प्रथा अधिनियम पारित किया गया जो कि 1 जुलाई 1961 को लागू हुआ इस अधिनियम के अंतर्गत अब दहेज लेना या दहेज देना दोनों ही कानूनी अपराध है और ऐसे व्यक्ति हैं जो दहेज लेंगे वह दहेज देंगे दोनों को ही न्यूनतम 5 वर्ष का कारावास या न्यूनतम ₹15000 का दंड भुगतना पड़ेगा सरकार ने इस अधिनियम को पारित करके एक ऐतिहासिक दिन तो बनाया पर सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अब समाज में दहेज प्रथा प्रचलित नहीं है मगर इसके विपरीत आज भी समाज में दहेज प्रथा काफी जोरों शोरों से प्रचलित है और अगर इसके खिलाफ ठोस कदम ना उठाए गए तो आगे भी यह ऐसे ही रहेगी.

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम

1) महिलाओं द्वारा आत्महत्या करना: ऐसा काफी देखा गया है कि जब वधू पक्ष वर पक्ष की इच्छा अनुसार मांगे गए दहेज की पूर्ति को पूरा नहीं कर पाते तब वधू पर ससुराल में काफी अत्याचार होते हैं जिससे तंग आकर वह आत्महत्या जैसा एक कठोर कदम उठाने पर मजबूर हो जाती हैं पर यही चीज उनके साथ भी देखी गई है जिन्होंने विवाह के समय काफी दहेज व पैसा दिया पर जैसे ही पैसे खत्म हुए तभी से वधू वर ससुराल में अत्याचार शुरू हो गए तो हमें इससे यह सीख मिलती है दहेज देना इस समस्या का समाधान नहीं है.

See also  योग पर हिंदी निबंध | Hindi Essay on Yoga

2) वधू पक्ष का ऋण ग्रस्त होना-
वर पक्ष की मांग को पूरा करने के लिए वधू पक्ष उधार ले लेकर उनकी मांगों को पूरा करते हैं जिसके कारण वह लोग कर्जे में डूब जाते हैं और फिर से उनका सामान्य स्थिति पर आना काफी कठिन हो जाता है और यह समस्या आजकल समाज में काफी देखने को मिलती है.

3) अविवाहित जीवन
जब वधू पक्ष वर पक्ष की मांगों को पूरा करने में असमर्थ होता है तो कई बार ऐसा देखा गया है कि रिश्ते शादी तक पहुंचने से पहले ही टूट जाते है जिसके कारण वश महिलाएं अविवाहित रह जाती हैं जिससे उनके मानसिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ता है.

दहेज प्रथा के निराकरण हेतु उपाय –

प्रेम विभाग को सामाजिक मान्यता दी जाने से दहेज प्रताप पर काफी हद तक रोक लग सकती है क्योंकि जब लड़का और लड़की दोनों एक दूसरे को पसंद करेंगे तब दहेज जैसी कोई भी चीज उनके बीच में नहीं आ सकती.

स्त्री शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने से भी दहेज प्रथा पर रोक लगाई जा सकती है जब स्त्रियां भी पढ़ लिख कर सक्षम होंगी तो उनके परिवार को दहेज जैसी चीज वर पक्ष को देने की कोई जरूरत नहीं होगी.

अंतरजातीय विवाह को मान्यता देने से भी दहेज प्रथा पर रोक लगाई जा सकती है क्योंकि ऐसी कई जातियां है जिनमें दहेज लेना या देना दोनों ही काफी हद तक गलत माना जाता है जिस चीज से काफी जातियां यह चीज उनसे सीख पाएंगे और हमारा समाज प्रगतिशील समाज की ओर बढ़ेगा.

See also  नक्सलवाद (Naxalism) पर निबंध | Essay on Naksalavaad in Hindi

दहेज विरोधी कानून का सख्ती से पालन भी एक बहुत ही असर दायक उपाय है जिस से दहेज प्रथा रोकी जा सकती है अगर कानून को कठोर तरीके से लागू किया जाए.

अमीरों से ज्यादा गरीबों की समस्या है यह दहेज प्रथा-

दहेज प्रथा अमीरों से ज्यादा गरीबों का सिरदर्द बनती जा रही है अमीर लोग तो अपनी बेटियों को अच्छे परिवार में देने के लिए दहेज दे देते हैं लेकिन गरीब परिवार दहेज देने के कारण ऋण ग्रस्त हो जाते हैं जो कि एक बहुत ही गंभीर समस्या है.

उप संहार

दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी यदि आप एक लड़की है और आपकी शादी किसी दहेज लोभी से हो रही है तो इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और आप एक लड़के हो तो स्वावलंबी बनकर दहेज लेने से इंकार कर देना चाहिए!!

Scroll to Top