बल्ब के बारे में जानकारी | Bulb Ke Bare Mein Jankari Hindi Mein

जानिए कैसे बल्ब बना हमारे जीवन में विज्ञान एक वरदान? आविष्कार कब हुआ और किसने किया, उनका वैज्ञानिक नाम क्या है? बिजली के बल्ब का आविष्कार सच में हमारे मानव जीवन के लिए विज्ञान का एक वरदान से कम नहीं है। बिजली के बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन का कहना है कि जिन्दगी के हर मुश्किल रास्ते में कामयाबी पाने के लिए सबसे निश्चित तरीका है- एक और बार प्रयास करना। जिन्होंने एक हजार से भी ज्यादा असफलता के बाद बिजली के बल्ब का आविष्कार किया था।

तापदीप्त लैम्प या इन्कैडिसेट (incandescent lamp) लैम्प को बल्ब के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

विधुत बल्ब के आविष्कार के पहले लोग अपने घरों में उजाला करने के लिए आग, दीया या तेल का इस्तेमाल करते थे। ऐसा कोई लैम्प न था, जो किसी चीज को जलाने के बजाय उसे तपाकर रोशनी की जा सके। जैसे- किसी तार में विधुत धारा प्रवाहित करने पर उसमें ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे तार का ताप बढ़ जाता है तथा बहुत अधिक ताप पर चमकने लगता है अर्थात प्रकाश उत्पन्न होता है।

सन् 1879 में बहुत से वैज्ञानिक एक ऐसा ही लैम्प ईजाद करने की कोशिश कर रहे थे, पर फिर भी थॉमस एडिसन को क्यों कहा गया बल्ब का आविष्कारक क्योंकि इन्होंने एक लंबे समय तक चलने वाली फिलामेंट का आविष्कार किया था। जो कि लंबे समय तक रोशनी देने की क्षमता रखती थी।

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फिलामेंट तैयार करने के लिए थॉमस एडिसन को लगभग 6,000 पौधों की जरूरत पड़ी। उसके अंदर से उन्होंने एक कपास के पौधे को चुना क्योंकि कपास के पौधे के रेशे के अंदर ज्यादा समय तक बिजली उत्पन्न करने की क्षमता थी। उसके बाद कपास के रेशे के जगह बांस के रेशे को जलाकर कार्बन का फिलामेंट बनाया और 21 अक्टूबर, 1879 ई॰ को वे विधुत से बल्ब जलाने में सफल हो गए। उनका लैम्प चमका और मधु प्रकाश देने लगा।

वह उस जलते हुए लैम्प को पुरे दो दिन तक देखते रहे। उनके आविष्कार के बाद अन्य वैज्ञानिकों ने लैम्प में कई सुधार किए।

थॉमस अल्वा एडीसन (Thomas Alva Edison) –
एडिसन का जन्म मिलान (ओहयो, अमेरिका) में हुआ था। एडिशन के हरकतों से लोग उन्हे पागल समझते थे। बचपन से ही उनका दिमाग भ्रमित रहता था। एक बार उन्होंने एक चिड़िए को कीड़े-मकोड़े खाते देख उन्होंने सोचा कि उड़ने के लिए शायद कीड़े खाना पड़ता है। उसके बाद उन्होंने कुछ कीड़ों को इकट्ठा कर उसका घोल अपने मित्र को पिला दी। वह देखना चाहते थे, कि उसके बाद उनका मित्र उड़ सकता है कि नहीं। बाद में दोस्त बीमार पड़ गया, जिससे उन्हें बहुत डांट सुननी पड़ी थी। स्कुल के दिनों में भी वह अपने में ही खोए रहते थे और टीचर्स की बातों को ध्यान नहीं देते थे। जिसके कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। फिर उनकी माँ ने थॉमस को घर पर ही पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने अपने घर में एक छोटी सी प्रयोगशाला बना ली थी। एडिशन इतने प्रतिभावान थे, कि वह बचपन से ही कमाने लगे थे।

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मात्र 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘वीकली हेरल्ड’ नामक साप्ताहिक पत्र निकाल दिया था। थॉमस अल्वा एडिसन को विश्व का सबसे महान आविष्कारक कहा जाता है। वह ‘मेनलो पार्क के जादूगर’ के नाम से भी जाने जाते हैं।
उन्होंने बिजली के बल्ब के अलावा चलचित्र, फोनोग्राफ, टेलीग्राफ, कार्बन टेलीफोन, ट्रांसमीटर, माईक्रोफोन आदि कितने ही उपयोगी और महत्वपूर्ण चीजों का आविष्कार किया था।
सचमुच वह एक महान वैज्ञानिक थे उनका बल्ब का आविष्कार दुनिया का सबसे अद्भुत और अनुपम आविष्कार है, जो मनुष्य के जीवन को सदैव प्रकाशित करता रहेगा।

विद्युत बल्ब कैसा होता है?

यह एक प्रकार का कांच का एक खोखला गोला है, जिसके अंदर नाइट्रोजन अथवा आर्गन जैसे गैस भरे रहते हैं। इसके ऊपरी भाग पर पीतल की टोपी लगी रहती है जिसके दोनों ओर दो पिन होती है। जो बल्ब को होल्डर में लगाने में सहायक होती है। इसमें कांच की छर होती है, जिसके अंदर तांबे के मोरे तार होते हैं। तारों के अंदर वाले सिरों पर टंगस्टन का इसलिए बनाया जाता है, क्योंकि इसके बहुत पतले तार बनाए जा सकते हैं और इसका गलनांक भी बहुत ऊंचा (3400° c) होता है। बल्ब को ऊपर से लाख या चमड़े से बंद कर दिया जाता है, जिससे बाहर की वायु इसमें प्रवेश न कर सके।

बल्ब कैसे जलता है?

सबको ज्ञात है, कि बल्ब के अंदर एक बहुत पतला तार होता है, जिसे फिलामेंट कहते हैं। जब वैद्युत धारा बल्ब में प्रवाहित की जाती है, तो टंगस्टन का फिलामेंट गर्म होकर चमकने लगता है, जिसके कारण बल्ब प्रकाश देने लगता है।

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फिलामेंट को कांच के अंदर क्यों रखा जाता है?

फिलामेंट एक पौधे के रेशे से बना होता है। वायुमंडल की वायु उसे हानि पहुंचाती है इसलिए इसे कांच के अंदर रखा जाता है। उसके साथ मरकरी भी रखी जाती है।

दोस्तों अगर आप अपने घरों के अंदर बल्ब का इस्तेमाल करते हैं, तो उसे खराब होने के बाद तोड़े नहीं क्योंकि उसके अंदर मौजूद मरकरी हमारे वातावरण को खराब कर सकती है और जल की सतह को हानि पहुंचाती है।