वास्तु शास्त्र के अनुसार दिशाओं का महत्व

वास्तुशास्त्र की वास्तु का महत्व प्राचीन समय से ही चला रहा है। हमारे ऋषि मुनियों ने ग्रह, मंदिर शहर आदि प्राचीन समय में ही वास्तुशास्त्र के अनुसार किये मित्रों वास्तु का सीधा सम्बन्ध मनुस्य के ऊपर पड़ने वाले ग्रह नक्षत्रों से है। में आपको अपने इस लेख में आज बताने का प्रयत्न करूंगा कि सभी आठ दिशाओं का हमारे भवन ग्रह आदि में कितना महत्वपूर्ण स्थान है। संपूर्ण विश्व पंच महाभूतों अथवा पंचतत्वों जैसे पृथ्वी, अपा, तेजस, वायु एवं आकाश से निर्मित है। आकाश तत्व जीवन के उच्चतर स्तर पर कार्य करता है जबकि चारर आधारभूत तत्व जैसे पृथ्वी, अपा, तेजस एवं वायु मनुष्य के दिनानुदिन जीवन के लिए उपयोगी है। वह स्वयं भी पंच महाभूत का उत्पाद है। वह घर जिसमें वह निवास करता है यदि उसमें तत्वों के तीन अवयवों की उपस्थिति रहती है तो जीवन में पीड़ा एवं चिंता बनी रहती है। हमारे दैनिक जीवन में हमें अपना भाजन बनाना होता है खाना होता है, सोना होता है तथा उनेक दूूसरी गतिविधियां संपादित करनी होती हैं। इन सभी गतिविधियांे को तीन प्रकृति सात्विक, राजसिक एवं तामसिक में वर्गीकृत किया जा सकता हैै। ग्रहों के कारकत्व के अनुसार घर की प्रत्येक दिशा एवं हिस्सा हमारे जीवन के विभिन्न विभागों से संबंधित हैं। यदि नियमों की अवहेलना की जाती है तो वहां भ्रम एवं संशय की स्थिति उत्पन्न होगी तथा उस स्थान में रहने वाले लोग स्वास्थ्य एवं धनागमन से संबंधित उनेक समस्याओं का सामना करेंगे। घर में रहने वाले सभी सदस्यों में आपसी समझ की कमी होगी तथा विरोधाभासों के कारण तनाव उत्पन्न होगा। आईये अब हम विभिन्न दिशाओं एवं उनेक स्वामियों को समझने की कोशिश करें।

दिशा एवं उनके स्वामी पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य हैं तथा पश्चिम दिशा के स्वामी शनि हैं। इसी प्रकार उत्तर दिशा के स्वामी बुुध एवं दक्षिण दिशा के स्वामी मंगल हैं। उत्तर-पूर्व दिशा के स्वामी बृहस्पति एवं दक्षिण-पूर्व दिशा के स्वामी शुक्र है। उत्तर-पश्चिम दिशा चंद्रमा के द्वारा शासित होता है तथा दक्षिण-परिश्चम दिशा राहु के द्वारा शासित है। सूर्य जो कि पूर्व दिशा का स्वामी है, स्वास्थ्यवर्द्धक माना जाता है इसीलिए सूर्य की किरणों का प्रवेश सुबह में घर में होना चाहिए हम दरवाजे एवं खिड़कियां इस प्रकार से रखते हैं कि घर में सूर्य का प्रकाश अच्छी तरह से आ सके। इसीलिए खिड़कियां सूर्य एवं चंद्र के द्वारा शासित होती हैं जिन्हें प्रकाशपुंज कहा जाता है तथा दूसरे शब्दों में यही ग्रह मानव जीवन मंे प्रकाश प्रदान करने में सक्षम हैं खासकर शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखकर सूर्य की जीवनदायिनी सिद्धांतों को मानते हुए दरवाजे एवं खिड़कियों को खुला रखा जाता है ताकि घर में सूर्य की किरणों का प्रवेश हो सके क्योंकि सुबह के सूर्य में जल को शुद्ध करने के गुण होते है। सूर्य के प्रकाश का सुबह में प्रवेश जीवन को संरक्षा प्रदान करता है क्योकि जैसे ही सूर्य ऊपर चढ़ता जाता है इसकी विध्वंसकारी शक्तियां बढ़ती जाती हैं। शामम में जब यह नीचे उतरता है तब भी इसका प्रभाव काफी मनभावन होता हैं। यदि रसोईघर घर के पूर्व मेें स्थ्ति हो तो चूंकि शुक्र सूर्य का शत्रु है इसलिए ग्रह स्वामिनी को वायवीय विकाश तथा घबराहट की परेशानी होगी साथ ही मृत्राशय से संबंधित परेशानियां भी हो सकती हैं।

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पश्चिम दिशा का शासक ग्रह शनि है। यह दिशा भोेजन कक्ष के लिए काफीी उपयुक्त है तथा यह परिवार में शुभ प्रभाव लाता है जिस व्यक्ति के इस दिशा मंे मुख्य द्वार होते हैं उसे काफी कठिनाइयों से गुजरना होता है तथा वह अपनी आजीविका शारीरिक श्रम से अर्जित करता है क्योंकि शनि श्रम एवं कठिन परिश्रम का द्यातक है। इस दिशा में खाद्यान्न रखना लाभदायक है।

उत्तर चूंकि उत्तर दिशा बुध के द्वारा शासित होता है जो कि मस्तिष्क, शिक्षा आदि का ग्रह है, हम इस दिशा में अध्ययन कक्ष बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त इस दिशा में धन रखने के लिए खजाना अथवा लाॅकर भी स्थापित कर सकते हैं। धन के स्वामी बुध हैं जो कि भगवान विष्णु के प्रतीक हैं। यदि घर का मुख्य द्वार इस दिशा में रखा जाता है तो परिवार का मुखिया काफी बुद्धिमान होगा तथा वह अपनी आजीविका व्यावसायिक उद्यमों अथवा बौद्धिक कार्यो के द्वारा अर्जित करेगा क्योंकि बुध बुद्धि का द्योतक तथा परामर्श एवं संवाद काा कारक है। सामान्यतः धन रखने के लिये खजाना अथवा लाॅकर के लिए यह दिशा काफी उपयुक्त है।

दक्षिण दिशा के स्वामी मंगल हैं। यह दिशा शयन कक्ष के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। पति के कारक ग्रह मंगल एवं पत्नी के कारक ग्रह शुक्र दोनों एक दूसरे के मित्रवत हैं। अतः इसीलिए यह दिशा दोनों के साने तथाा आपसी प्रेम एवं समझ विकसित करने के उद्देश्य से श्रेष्ठ है। यदि रसोई घर एवं शयन कक्ष दोनों एक दिशा में स्थित होते हैं तो दम्पत्ति को काफी मानसिक तनाव का अनुभव करना पड़ता है। इस दिशा में बैठकर खाना खाना भी उपयुक्त नहीं है क्योंकि इससे स्वास्थ्य खराब हो सकता है तथा उनेक प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं। इस दिशा को मृत्यु के भगवान की दिशा कहा जाता है।

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उत्तर-परिश्चम

इस दिशा के स्वामी वायु हैं। वायु हवाओं के देव हैं तथा इसके शासक ग्रह चंद्रमा हैं। यदि मुख्य द्वार इस दिशा में होता है तो ग्रह स्वामी को काफी यात्राएं करनी पड़ती हैं। यह स्थान खाद्यान्न रखने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। यहां पर पूजा ग्रह रखने से भी काफी शुभ संकेत प्राप्त होंगे।

दक्षिण-परिश्चम

यह दिशा राहु के द्धारा शासित होता है। इस स्थान पर मास्टर बेडरूम का निर्माण करना चाहिए। यदि किसी कारण से इस दिशा की दीवारें जीर्ण-शीर्ण हों तो वहां मृत आत्माओं का आगमन होता है।

उत्तर-पूर्व

यह दिशा बृहस्पति के द्धारा शासित होता है तथा यहां के शासक देवता ईश्वर होते हैं। यह स्थान आध्यात्मिक कार्यों के सर्वाधिक उपयुक्त हैं। इस दिशा में पूजा की मुर्तियां स्थापित होनी चाहिए ऐसा होने पर ग्रह स्वामी को समाज में अच्छा सम्मान, प्रतिष्ठा एवं इज्जत प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिशा में पूजा ग्रह एवं स्नान ग्रह काफी शुभपरिणामदायी होते हैं तथा दीर्घजीविता, अच्छा स्वास्थ्य, सौभाग्य एवं मन की शांति प्रदान करते हैं।

दक्षिण-पूर्व

दक्षिण पूर्व के स्वामी अग्नि हैं तथा इन्हें अग्नि देव कहा जाता हैं। शुक्र इस दिशा के स्वामी ग्रह हैं। यदि इस दिशा में रसोई घरर बनाया जाता है तो परिवार में शांति एवं सौहार्द्र कायम रहता है। यदि किसी कारणवश यहां पर ओवरहेड टैंक अथवा अधिक मात्रा में खाद्य सामग्री रखा जाता है तो ग्रह स्वामिनी एवं उनकी पुत्रियांे को खराब स्वास्थय का सामना करना पड़ता है। अतः घर के विभिन्न हिस्सों के अच्छे एवं बुरे पक्षों को समझने के लिये मुख्य ग्रहों एवं उनकेे साथ स्थ्ति उपग्रहों के स्वभाव को समझना आवश्यक है। इसे समझने के लिये हमें घर के विभिन्न हिस्सों के लिए प्रत्येक ग्रह का पता करना होगा। सूर्य एवं चंद्र जो कि खिड़कियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ये घर के अगले हिस्से के दायें एवं बायें भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। घर के अंदर हाॅल का प्रतिनिधि ग्रह मंगल, शयन कक्ष का शुक्र, स्टोर रूम का शनि एवं अगले दरवाजे में वायु परिचालन के प्रतिनिधि ग्रह केतु हैं। सामान्य रूप में केतु मल-सफाई, स्थिर जल अथवा गड्डे का प्रतिनिधित्व करता है। चंद्र सामान्य रूप में गौशाला एवं खाद्यान्न संचय का द्योतक है। यद्यापि कि शनि भी संचय से संबंधित ग्रह है, यह खाने वाले सभी जीवों का भी प्रतिनिधित्व करता है अतः पश्चिम दिशा भोजन के लिए उपयुक्त है। बुध का स्वामित्व घर के हाॅल के अतिरिक्त खजाना रूम अथवा लाॅकर पर भी है जहां हीरे जवाहरत, जेवर, धन, नगर राशि एवं कागजात जा सकता है जहां लोहे की आलमारियां रखी जाती है। राहु जो कि नेर्ऋत्य का स्वामी है, यह फालतू एवं निरर्थक सामानों का शासक है। इस प्रकार आठ दिशाओं के स्वामी हैं इंद्र (पूर्व), अग्नि (दक्षिण-पूर्व), यम (दक्षिण), वरूण (दक्षिण-पश्चिम), शनि (पश्चिम), कुबेर (उत्तर), ईश्वर (उत्तर-पूर्व) एवं वायु (उत्तर-पश्चिम)।

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अब हम कुछ ग्रहों के कारकत्वों का अध्ययन करें जो वास्तु के सिद्धांतों के लिए उचित हैः सूर्य अग्नि, पिता, पूर्व दिशा, मानसिक शुद्धता, तांबा एवं मुख का द्योतक है। चंद्रमा मन, जल, हदय, चांदी, माता, तालाब, पोषण, जीवन के सुख, भोजन, शुद्ध रक्त एवं जीवनदायिनी ऊर्जा का द्योतक है। मंगल दक्षिण, अग्नि, प्रेम, जेवरात, सोना, सुंदर वस्त्राभूषण, जंगली तत्वों के प्रबंधक आदि का द्योतक है। बुध खजाना, लेखन, बातचीत, दर्शन, डाॅक्टर, ज्योतिषी, परिवार की समुद्धि एवं पवित्र प्रार्थना का द्योतक है। बृहस्पति कर्म, मंत्र, पवित्र जल, स्वर्ग में विचरण, मधुर रस एवं भद्रता का द्योतक है। शुक्र महिला, विवाह, दक्षिण-पूर्व कोना, सौंदर्य, प्रेम-प्रदर्शन, आनंद, संगीत, पत्नी सुख एवं भाग्य का द्योतक है। शनि श्रमिक वर्ग, कर्मचारी, चाटुकारिता, वृद्धावस्था, काले अन्न, लोहा, शस्त्रागार एवं तमस गुण का द्योतक है। राहु दक्षिण-पश्चिम, जुआ, निरर्थक सामग्री एवं ग्रदी वस्तुओं का द्योतक है। केतु भगवान गणेश, कड़ी तपस्या, जादू-टोना, ब्रह्य ज्ञान, दर्शन एवं भाग्य का द्योतक है। इसीलिए हमारे ऋषियों ने ग्रहों की दिशा एवं कारकत्वों का ध्यान रखकर आवासीय भवन निर्मित करने की सलाह दी जिससे कि लोगों की शांति एवं समृद्धि बनी रहै।

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