विश्व का आठवां महादेश: जीलैंडिया (Zealandia)

भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में कुल पच्चीस तत्वों को महत्वपूर्ण माना है,जिस में पहले स्थान पर प्रकृति को रखा है।ये पाँच तत्व यथा:- क्षितिज,जल,पावक,गगन एवं समीर के समायोजन से आकार लेती है। इन पाँच तत्वों में क्षितिज अर्थात् भू-भाग का वह हिस्सा,जहां धरती एवं आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैं जो प्रतिशत: भूमि एवं जल के संयोजन बिंदु पर ही दिखाई देता है एवं जल ऐसे तत्व हैं,जिनकी गिनती धरती के प्रथम श्रेणी के उच्चावचों में की जाती है,जिनके उदाहरण क्रमश: महादेश एवं महासागर हैं। सम्पूर्ण पृथ्वी का 70.8 प्रतिशत हिस्सा महासागरों से घिरा से है,जबकि 29.2 प्रतिशत हिस्सा महाद्वीपों से। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तरी गोलार्ध का 75 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा भू-भाग से,जबकि दक्षिणी गोलार्ध का ज्यादा हिस्सा पानी से घिरा है।यही कारण है कि उत्तरी गोलार्ध को ‘भूमि गोलार्ध’, जबकि दक्षिणी गोलार्ध को ‘जलीय गोलार्ध’ कहा जाता है। महादेशों की चर्चा आजकल जोरों पर है।कारण यह नहीं कि जानवरों की किसी नई प्रजाति को हमारे जीव-वैज्ञानिकों ने ढ़ूंढ़ निकाला है या फिर किसी नई जनजाति के अस्तित्व का पता चला है,जो अभी तक इस दुनिया की दृष्टि से परे थी बल्कि मुख्य बात यह है कि “जीलैंडिया” नामक आठवें महाद्वीप की खोज हुई है और शीध्र ही अनुमोदन के बाद विश्व के मानचित्र पर अब हमें सात महाद्वीप नहीं, आठ महाद्वीप दिखाई देंगे। इस महाद्वीप का नामकरण प्रसिद्ध समुद्री वैज्ञानिक Bruce Luyendyk ने 1995 में किया था। “जीलैंडिया” गोंडवाना मुख्य भूमि के महाद्वीपीय भू-पर्पटी का हिस्सा था,जो इससे 82 मिलियन साल पहले टूटकर अलग हुआ था।

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प्रारंभ में बहुत से विद्वानों ने इसे Continental Fragment (महाद्वीपीय खंड) की संज्ञा दी तो किसी ने Micro-Continent (सूक्ष्ममहाद्वीप) कहकर पुकारा किंतु 2017 में न्यू कैलिडोनिया, न्यूजीलैंड एवं ऑस्ट्रेलिया के भूगर्भशास्त्रियों ने इसका संपूर्ण अध्धयन करके यह निष्कर्ष निकाला कि “जीलैंडिया” महाद्वीप बनने के सारे मानदंडों को संतुष्ट करता है एवं इसे महाद्वीप की संज्ञा प्रदान की जानी चाहिए। महाद्वीपों की उत्पत्ति से संबंधित अनेकों विचार एवं प्राक्कल्पनाएं मौजूद है किंतु सबसे प्रभावी प्रक्कल्पना Lothian Green की ‘Tetrahedral Hypothesis अर्थात् ‘चतुष्फलकीय प्रक्कल्पना’ को माना जाता है। इस के अनुसार पृथ्वी उत्पत्ति के समय एक गोला(Sphere) के रूप में बहुत गर्म थी। धीरे-धीरे उष्मीय क्षति के कारण यह ठंडी होनी शुरू हुई।जिसके फलस्वरूप इसका बाहरी हिस्सा ठंडा हुआ और भू-पर्पटी(Crust) का निर्माण हुआ,जबकि इसका आंतरिक हिस्सा(Core) ठंडा होने की प्रक्रिया में अनवरत शामिल रहा।भू-पर्पटी एवं आंतरिक हिस्से में पैदा हुए इस तापांतर,आंतरिक हिस्से में लगातार संकुचन एवं दोनों स्तरों में दाब के गुणों में भिन्नताओं के कारण पृथ्वी का स्थिर यानि ऊपरी हिस्सा (Crust) आंतरिक हिस्से पर टूटकर गिर गया एवं आंतरिक हिस्सा चतुष्फल(Tetrahedron) की तरह बनने के लिए अग्रसरित रहा।एक चतुष्फल के कोने बहुत ही तीक्ष्ण एवं तीव्र होते होते हैं,जबकि इसके चार मुख इन कोनों के विपरित एवं समतल होते है।ग्रीन के अनुसार पृथ्वी के संदर्भ में इन चार समतल मुखों में चार महत्वपूर्ण महासागर यथा:-प्रशांत,अंध्र,हिंद एवं आर्कटिक का निर्माण हुआ जबकि कोनों या शीर्ष पर महाद्वीपों का निर्माण हुआ। महाद्वीपों एवं महासागरों की उत्पत्ति के संदर्भ में भले ही इस प्रक्कल्पना की कितनी भी आलोचना की गई हो किंतु यह साधारण जनमानस को भी बड़ी आसानी से इसे समझाने में सफल रहा है।

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भू-वैज्ञानिकों के अनुसार “जीलैंडिया” लंबा एवं नुकीले आकार एकमात्र महाद्वीप है, जिसका 93 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा दक्षिणी प्रशांत महासागर में डूबा है।चूँकि यह कोई नवीन विकसित संरचना नहीं है, अत: इसे लुप्त महाद्वीप (Lost Continent) से भी संबोधित किया जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल 46 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप का लगभग आधा है। इसके तीन प्रमुख भू-खंड हैं,जो उत्तर से दक्षिण के क्रम में New Caledonia( फ्रांस के उपनिवेश) से लेकर North Island(New Zealand) एवं South Island (New Zealand) तक फैले हैं।मकर रेखा “जीलैंडिया” से होकर गुजरती है और न्यू कैलिडोनिया एवं न्यूजीलैंड के उत्तरी द्वीप को अलग करती है। न्यूजीलैंड की राजधानी वेलिंगटन उत्तरी द्वीप पर है और इसकी सर्वोच्च चोटी ‘माउंट कुक’,जिसकी खोज जेम्स कुक ने 1710 ई. में की थी,दक्षिणी द्वीप पर स्थित है। टेकटोनिक निर्माण की दृष्टि से “जीलैंडिया” बहुत ही सक्रिय है क्योंकि इसका एक हिस्सा ऑस्टेलियन प्लेट पर, जबकि दूसरा हिस्सा प्रशांत प्लेट पर स्थित है। इन दोनों प्लेटों के आपसी टकराव के कारण उत्पन्न हुई भूतापिक क्रियाएं(Geothermal Activities) इस बात की द्योतक है कि यहां बहुत सारे प्राकृतिक सोते एवं गर्म पानी के झरने मौजूद है। “जीलैंडिया” में कुल छः प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्र हैं, जिनमें उत्तरी द्वीप पर बसा ‘Taupo Volcanic Zone’ सबसे बड़ा है। जीलैंडिया के डूबे हिस्सों में खनिज भरपूर मात्रा में उपस्थित हैं।हालांकि इन क्षेत्रों में निम्न सामुद्रिक खुदाई पर न्यूजीलैंड का एकाधिकार है। “जीलैंडिया” के डूबे खंडों में बचे जीवाश्मों के क्रमिक अध्धयन से Paleobotony एवं Paleography के छुपे कई रहस्य उद्धाटित हो सकते हैं। जीलैंडिया के नवीन मानचित्र का निर्माण ‘निप्पोन फांउडेशन’ की मानचित्र संबंधी संयुक्त पहल “सी-बेड 2030” (Sea bed 2030) एवं ‘द जनरल बैथिमेट्रिक चार्ट ऑफ ओशन (GEBCO) के अंतर्गत किया गया है,जिसका उद्देश्य 2030 तक समूल विश्व के महासागरीय नितल का मानचित्रण करना है। इस महाद्वीप की खोज के बाद भू-वैज्ञानिकों, भूगर्भशास्त्रियों एवं भूगोलवेत्ताओं में खुशी की लहर सी दौड़ गई है। बहरहाल,यह देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि इस आठवें महाद्वीप के स्वीकृति के बाद विश्व मानचित्र का क्या स्वरूप उभर कर आता है एवं क्या नए-नए वैश्विक परिवर्तन हमारे सामने आते हैं!

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