कहानी, नाटक और आवेदन में भिन्नताएं।

कहानी का विश्लेषण

कहानी भी लेखन कला का ही भाग होता है। कहानीकार कहानी लिखने के लिए किसी नियम को मानने के लिए बाध्य नहीं होता है। कहानीकार कहानी लिखने समय कहानी में दर्शाया सभी बिंदु अपने आप प्रकट करते हैं। कहानी रोमांचित डरावनी या फिर काल्पनिक भी हो सकती है। भारतवर्ष में कहानी का इतिहास बहुत पुराना है। कहानी विभिन्न भाषाओं में लिखी जाती है। कहानी मुख्यता बंगाल से आरंभ हुआ था और आज यह संपूर्ण विश्व पटल पर छाया हुआ है। कहानी लेखन कला का सबसे ज्यादा प्रचलन भाग है। कहानी बच्चों की पाठ्यक्रम की पुस्तकों में भी दी जाती है। बच्चे कहानी को बहुत पसंद करते हैं इसीलिए कहानी के माध्यम से बच्चों में सौर्य, साहस और जागरूकता लाया जाता है। कहानी कार्टून तथा सच्ची घटना पर आधारित हो सकती है यह देवी देवता दानव वन पर्वत नदी नाले राजा रानी सभी विषयों पर लिखा जा सकता है। कहानी सुनने में मजा आना कहानीकार के ऊपर निर्भर करता है। कहानीकार के सोच और मानसिकता पर कहानी में उल्लास तथा डर लगता है। बचपन में सब ने राजा रानी बहादुरी आदि की कहानी सुनी होगी। कहानी का शुरुआत लगभग मानव जीवन के शुरुआती दौर में ही हो चुका था भारतवर्ष में भी मुंशी प्रेमचंद आदि जैसे महान कहानीकार का जन्म हुआ है। कहानी का कोई नियम नहीं होता इसीलिए इसमें शब्दों के नंबर का चयन अपने मन से करना गलत होगा या सही होगा यह सब कहानीकार पर निर्भर करता है। कहानीकार कहानी के जरिए एक उद्देश्य का विस्तार करना चाहता है। प्रत्येक कहानी से हमें कुछ ना कुछ सीखने को मिलती है यह कहानी लिखने का एक अनोखा उदाहरण है।

कहानी लेखन कला की एक प्रकार है जिसके माध्यम से प्राचीन घटनाएं, कल्पनाएं, सौर्य, साहस, पराक्रम, पशु-पक्षी, नदियां, पहाड़, जंगल, देवी- देवताओं को रोमांचित उल्लासित अथवा भयावह रूप में दर्शाया जाता है। प्रत्येक छोटी-बड़ी घटनाओं को लेखक अपने अंदाज में छोटे-छोटे बच्चों को खासकर अवगत कराने के उद्देश्य अथवा मनोरंजन के उद्देश्य अथवा सही गलत समझाने के उद्देश्य लिखते हैं। कहानी का सारांश कहानीकार के गुण, व्यक्तित्व तथा नेतृत्व की शक्ति पर निर्भर करता है मनुष्य जीवन प्रारंभ होने के साथ ही कहानी का भी शुरुआत माना जाता है। वैसे कहानी लेखन की प्रक्रिया संभवत बांग्ला भाषा में शुरू हुई थी। वहीं से फैलते फैलते आज कहानी संपूर्ण विश्व में फैल गई। यह लेखन कला की सबसे विशिष्ट तथा अधिक विस्तार होने वाली कला है। भारत में कहानी का अस्तित्व महत्वपूर्ण है। बच्चों को बचपन में तरह-तरह की कहानियां सुनाई जाती है फिर यही कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। बचपन में हम सब ने मम्मी पापा दादा दादी रिश्तेदारों के मुख से तरह तरह की कहानियां सुनी हैं। रोते हुए बच्चों को चुप कराना हो या खाना खिलाना हो इसमें कहानी का महत्वपूर्ण योगदान होता है। बचपन में बच्चे कहानी के माध्यम से बहुत कुछ सीखते हैं जिससे उन्हें जीवन का महत्व और सच्चाई का ज्ञान होता है। वह कहानियों से प्रेरित होकर कुछ करने को संकल्पित होते हैं। कहानी वह है जो बीती हुई अथवास काल्पनिक घटनाओं पर आधारित हो जिसे वक्ता अथवा लेखक अपने अंदाज में व्यक्त कर अलग-अलग रूप से सुना सके। प्रत्येक कहानीकार के कहानी के पीछे उद्देश्य अवश्य छिपा होता है। कहानी प्रकाशित करना सामान्य सी बात है परंतु कहानी पर पाठक का ध्यान आकर्षित करना यह कहानी और कहानीकार की महत्वता बतलाती है। कहानी लेखन प्रक्रिया का भाग है। इसका उचित परिभाषा लेखक के अनुसार कहानी वह लेखन कला है जो पाठक को अनुग्रहित करती है, श्रोता को तथ्य बतलाती है तथा वक्ता को उद्देश्य का अनुभव कराती है। कहानी का परिभाषा कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा दिए गए हैं जो इस प्रकार से हैं। हिंदी कहानी कार प्रेमचंद के अनुसार कहानी वह ध्रुपद की तान है जिसमें गायक महफिल शुरू होते हैं अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है। एक क्षण में चित्र को इतने माधुरी से परिपूर्ण कर देता है जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता। अमेरिका के कहानीकार एडगर एलिन पो के अनुसार कहानी वह छोटी आख्यानात्मक रचना हो जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सके जो पाठक पर एक समन्वित प्रभाव को उत्पन्न करने में सहायक तत्व के अतिरिक्त और कुछ ना हो और जो अपने आप में पूर्ण हो।

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नाटक का विश्लेषण

नाटक भी लेखन कला का ही एक भाग है। नाटक विचारधाराओं को समेटे काव्य और संवाद का मिश्रण है। नाटक में लिखी हुई बातें सरल तथा सामाजिक होती है जिसे अभिनय के माध्यम से आसानी पूर्वक उतारा जाता है। नाटक की परंपरा बहुत पुरानी है। भारतवर्ष में नाटक का एक अलग महत्व रहा है। वैदिक काल में शुरू हुए नाटक की परंपरा अपनी ख्याति और प्रशंसा के लिए विश्व विख्यात है। नाटक के माध्यम से हमेशा समाज में जागृति नई सोच और उल्लास उत्पन्न होती है। नाटक का नाटक अपने समस्त सामाजिक उद्देश्य विचारों को समेट कर लिखता है। परंतु नाटक को सामाजिक पटल पर अभिनय के माध्यम से उतारने हेतु अभिनय पात्र की आवश्यकता होती है। नाटक एक परंपरागत कला है त्योहारों के अवसर पर नाटक का एक अलग माहौल होता है।

नाटक कहानी और कविता का मिश्रण है। नाटक भी लेखन कला के अंदर ही आता है। किसी विषय वस्तु पर कहानी और कविता का स्वामी शरण लिखकर लोगों के समक्ष नाट्य भाव में अथवा अभिनय के द्वारा प्रस्तुत करना नाटक कहलाता है। नाटक एक कला है। जिसके कुछ महत्वपूर्ण भाग होते हैं। प्रत्येक भाग के अभिनय का अपना एक उद्देश्य होता है तथा उद्देश्य के द्वारा लोगों को रोमांचित तथा जागृत करने का उद्देश्य होता है। अभय के द्वारा लोगों में जागृति लाने का कार्य वैदिक काल से ही आरंभ हो गया था। नाटक का चर्चा हमारे ग्रंथों और पुराणों में भी मिलता है। आधुनिक युग में भी नाट्य मंच का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। अधिकाधिक संख्या में स्त्री पुरुष बच्चे और बूढ़े इसे देखने आते हैं। नाटक के माध्यम से समाज में जागृति फैलाने का कार्य आज की सरकार भली-भांति करती है। सरकार की बहुत सारी योजनाओं के अंतर्गत जैसे बाल विवाह दहेज प्रथा इत्यादि जैसी योजनाओं में नाटक का प्रयोग जागरूकता फैलाने के उद्देश्य किया जाता है। जिससे समाज इन सब को प्रथाओं से मुक्त हो। नाटक कविता कहानी नाच गाना का सम्मिश्रण गोल है। नाटक की तुलना कभी कहानी कविता या फिर किसी लेख से नहीं की जाती है। नाटक एक कठिन लेखन कला है जिसे व्यक्तियों के चरितार्थ के माध्यम से दर्शाया जाता है। नाटक का प्रचार प्रसार प्रत्येक भाषा में की जाती है। यह जगह जगह पर स्थानीय भाषा के रूप में प्रस्तुत की जाती है। नाटक आरंभ होने से पूर्व अभिनय पात्र दर्शाया जाता है। जिसमें नाटक के संस्थापक लोगों का अभिनंदन करते हैं तथा फिर नाटक का प्रदर्शन आरंभ होता है। नाटक की परिभाषा विभिन्न रूप में दी जा सकती है। बाबू गुलाब राय ने नाटक को कुछ इस प्रकार से परिभाषित किया है नाटक में जीवन की अनुकृति को शब्द गत संकेतों में संकुचित करके उसको सजीव पात्रों द्वारा एक चलते-फिरते सप्राण रूप में अंकित किया जाता है। हृदयरामकृत, हनुमानत्राटक, बनारसीदास आदि कुछ नाटक के उदाहरण हैं।

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आवेदन का विश्लेषण

आवेदन भी लेखन कला का ही एक भाग है। आवेदन से किसी सामाजिक उत्थान परिवर्तन की भावना उत्पन्न नहीं होती है। आवेदन लेखक अपने निजी स्वार्थ भावना से किसी व्यक्ति को लिखता है। आवेदन विद्यालयों में लिखना सिखाया जाता है। अपने जीवन काल में किसी भी सरकारी अथवा गैर सरकारी कामों के लिए आवेदन देना ही पड़ता है। आवेदन में किसी विशिष्ट व्यक्ति से किसी कार्य के सफल बनाने के प्रयोजन से प्रार्थना की जाती है। आवेदन के माध्यम से आभार भी व्यक्त किया जाता है। आवेदन मुख्य रूप से हमारे जीवन का एक हिस्सा होता है।

आवेदन की लेखन कला का एक भाग है। आवेदन सामाजिक पटल पर प्रकाशित ना होकर व्यक्तिगत तक ही सीमित रह जाता है। आवेदन का प्रयोग स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, अस्पताल इत्यादि अपने ऊपर के अधिकारियों को दिया जाता है। आवेदन का रूप इस बात की पुष्टि करता है कि लेखक किसी से सहायता मांगने के उद्देश्य आवेदन लिखता है। आवेदन लिखने का एक नियम होता है। यह किसी खास व्यक्ति को लिखा जाता है। इसमें मुख्य तो इस बात को ध्यान में रखा जाता है कि पाठक आवेदन पढ़ कर खुश हो जाए। आवेदन को विनती पत्र भी कहा जा सकता है। आवेदन को सार्वजनिक तौर पर यह सामूहिक रूप से पाठकों के लिए नहीं लिखा जा सकता है। विनती पत्र के रूप में आवेदन का इस्तेमाल वैश्विक स्तर पर किया जाता है।