अगर मैं शिक्षा मंत्री होता

शिक्षा मानव जाति के विकास का जरिया होता है। शिक्षा को समाज का दर्पण कहा जाता है। शिक्षा के आधार पर भविष्य की कल्पना की जाती है। व्यक्ति के चाल चलन गुनगुन संस्कार नैतिकता सामाजिकता सब शिक्षा के अनुरूप ही होता है प्ले स्टोर शिक्षा का कोई सीमा रेखा नहीं होती इसकी कोई उम्र नहीं होती है। शिक्षा का महत्वता जानने के लिए भी शिक्षा की आवश्यकता होती है। शिक्षा मनुष्य के सोचने समझने तथा जीवन में सही दिशा की ओर अग्रसर करने का कार्य करती है। इतिहास गवाह है कि एक शिक्षित व्यक्ति अपने समझ से पूरे समाज को उचित दिशा प्रदान करता है।

शिक्षा मानव के वर्ग समुदाय अमीर गरीब से परे होता है। शिक्षा मेहनत का भूखा होता है। जो जितना कठिन परिश्रम कर ज्ञान अर्जित करता है शिक्षा उसके जीवन को उतना ही सरल तथा सुख में बना देती है। एक शिक्षित व्यक्ति कभी भी समाज में नकारा नहीं बनता क्योंकि शिक्षा उसे सहनशील कर्मठ तथा विकासशील बनाती है। शिक्षा को प्रत्येक व्यक्ति पर समुचित रूप से पहुंचाने के लिए प्रत्येक राष्ट्र तथा राज्य में एक शिक्षा मंत्री होता है फॉरेस्टर शिक्षा मंत्री के कार्य का मुख्य उद्देश होता है समाज में प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित था सुयोग्य बनाने का कार्य करना ताकि राज्य तथा देश अपनी विकास की गति बनाए रखें अथवा गति में अग्रसर की ओर रहे। शिक्षित व्यक्ति विकासशील से विकसित राष्ट्र बनाने में नीति तथा गुणों के माध्यम से अपना योगदान देता है।

देश की साक्षरता दर देश की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति स्वयं में एक रोजगार सृजक को देखता है जबकि एक अनपढ व्यक्ति समाज में बोझ के समान होता है। एक अनपढ़ व्यक्ति समाज में अपना विकास एक शिक्षित व्यक्ति की अपेक्षा बहुत कम कर पाता है। शिक्षा मंत्री जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों में से बनाया जाता है। शिक्षा मंत्री अपने दायित्व का निर्वहन समाज को शिक्षित करने हेतु विभिन्न प्रकार की योजनाओं के तहत करते हैं। सर्व शिक्षा अभियान , सब पढ़े सब बढ़े आदि जैसे योजनाओं के माध्यम से जनता को लाभ पहुंचाने का कार्य शिक्षा मंत्री के जिम में होता है। शिक्षा मंत्री समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी शिक्षा पहुंचाने का कार्य अपनी योजनाओं के माध्यम से करते हैं।

See also  कैलकुलेटर की जानकारी

सरकारी विद्यालयों में मुफ्त पढ़ाई, मध्यान भोजन, पोशाक की राशि, छात्रवृत्ति, साइकिल, इत्यादि अनेक ऐसे लाभ दिए जाते हैं जिससे अभिभावक अपने बच्चे को विद्यालय भेजें। शिक्षा का स्तर हमारे देश में काफी ऊंचा हुआ करता था। परंतु बाहरी आक्रमण अदाओं के शासनकाल में देश में गरीबी हावी हुई और हमारी विरासत शिक्षा हमसे छीनता चला गया। शिक्षा के क्षेत्र में जहां कभी भारत को विश्व गुरु माना जाता था वही आजादी के बाद तक यह सुनने के करीब पहुंच गया था। आजादी के बाद हमारे देश के शिक्षा नीति में अनेक बार बदला हुआ। शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने का हर संभव प्रयास किया गया।

आज हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था तथा शिक्षा दर बहुत हद तक सुधरा है। परंतु अभी के समय में भी अच्छी शिक्षा नीति होते हुए भी भ्रष्टाचार और आरक्षण के कारण हमारे देश की शिक्षा दर कुछ खास नहीं सुधरा। जहां आजादी के बाद हमें होना चाहिए था हम उससे बहुत पीछे रह गए हैं। बेस्ट आचार हमारे समाज को दीमक की भांति को खड़ा करते जा रहा है। भ्रष्टाचार और आरक्षण की मेलजोल शिक्षा व्यवस्था को अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने से रोकता है। शिक्षा क्षेत्र या अन्य क्षेत्र सभी भ्रष्टाचार तथा आरक्षण से अपनी अस्मिता को खोता चला जा रहा है।

आरक्षण के कारण एक प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने उचित स्थान से वंचित रह जाता है तथा उसके स्थान पर आरक्षण के नाव में सवार व्यक्ति जगह ले लेता है। ज्ञान के अभाव में वह सही नीति तथा सही निर्णय लेने में असफल रहता है जिससे समाज में निधि का दुरुपयोग होता है तथा भ्रष्टाचार फैलती है। आरक्षण के कारण आज समाज में ज्ञान की जगह पैसों की बोलबाला चलती है। ज्ञान के अभाव में नीति को सही ढंग से लागू करने वाला व्यक्ति या भूल जाता है कि एक सही नीति समाज को सही दिशा में अग्रसर करता है तथा वह पैसों के लालच में कुछ पूंजी पतियों के अनुसार नीति बनाता है जिसे नीति का फायदा गरीब समाज को ना मिलकर पूंजी पतियों के पास चली जाती है।

See also  पेंसिल (Pencil) के बारे में जानकारी

शिक्षा पर सबका अधिकार है इसीलिए सर्व शिक्षा अभियान चलाया गया था परंतु शिक्षा को व्यापारिक रूप में परिवर्तन कम ज्ञान और लालच का ही परिणाम है। आजकल प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक का व्यापार पूजी पतियों द्वारा किया जाता है। गरीबों के लिए सरकारी विद्यालय हैं क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं कि वे निजी विद्यालय में दाखिला करवा सके। सक्षम व्यक्त के बच्चों के सरकारी विद्यालयों में ना होने के कारण कोई सरकारी विद्यालयों की तरफ ध्यान नहीं देता। ऊपर से नीचे तक सभी पदाधिकारी सरकारी विद्यालयों से सरकारी धन लूटने का कार्य करते हैं।

अगर कोई प्रतिभाशाली छात्र उच्चतम पढ़ाई हेतु इच्छुक भी हो तो सरकारी कॉलेजों में सीट के अभाव के कारण वह एडमिशन नहीं ले पाता तथा प्राइवेट में पढ़ने के लिए उसके पास पैसे नहीं होते हैं। सरकारी सीट पहले ही आरक्षण कोटे से भरी होती है। गरीबी और अमीरी कभी जाति देख कर नहीं आती। परंतु हमारे समाज में जाति को आधार मानकर गरीब अमीर की तुलना किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप आरक्षण जाति के अनुसार मिलता है। शिक्षा मंत्री होने का दायित्व समाज को अच्छी से अच्छी तथा प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा उपलब्ध कराना है। परंतु आरक्षण भ्रष्टाचार और लालच की जाल में फंसा हुआ है।

शिक्षा का सबको समान अधिकार देने हेतु सर्वप्रथम शिक्षा का व्यापार बंद करना होगा। प्रत्येक व्यक्ति को समुचित रूप से शिक्षा मिले तथा इसका सदुपयोग हो इसके लिए शिक्षा को आरक्षण मुक्त करना भी नितांत आवश्यक है। शिक्षा की सारी संस्थाएं सरकार के नियंत्रण में होना चाहिए तथा शिक्षा को मुक्त बनाना चाहिए। भ्रष्टाचार को रोकने हेतु शिक्षा के नीतियों में सुधार की नितांत आवश्यक है। शिक्षा समुचित रूप से बच्चों को मिल रही है या नहीं इसके लिए स्थानीय लोगों का दायित्व सपना होगा। योग्य और कर्मठ शिक्षकों की कमी के कारण भी शिक्षा का महत्व कम हो गया है इसीलिए योग्य शिक्षक का होना अति आवश्यक है। शिक्षकों और बच्चों में परस्पर संबंध स्थापित करने होंगे। शिक्षा का निजीकरण हर स्तर पर बंद करना होगा।

1 thought on “अगर मैं शिक्षा मंत्री होता”

  1. किशन कुमार

    Jo new education policy aaya wo kab se lagu hoga?

    New education policy pe aapki kya raye hai?

Comments are closed.

Scroll to Top